2012

इस   सुबह    का    इंतज़ार   ना   था   हमे
तुम वापस आ  जाओगी  यह   ऐतबार  था  हमे
तुम्हारा   ये   बलिदान   खली   नहीं   जायेगा
सजा न मिल जाये उनको तबतक चैन नहीं आ पायेगा


अभिषेक भटनागर 


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द्वार पर नव वर्ष है - नव वर्ष है
सपने  जो  देखे  हमने कितने
      पूरे  हुए   कितने  रह   गए ,
रह गए उनमे  नयी जान भरो ,
      उठो  शान  से  और  आगे बढो़
द्वार पर नव वर्ष है  नव वर्ष  है
जो  पाया   उस   पर हर्ष  है
हार कर बैठना  मुझको  नहीं  आया ,
यूं रूठकर सताना मुझको नहीं आया ,
रूठे जो है उनको मनाने का प्रयास करो,
पर   जो   भी   करो  दिल  से  करो ,

द्वार  पर  नव   वर्ष है   नव वर्ष है
क्या खोया इस पर  विचार विमर्श है
यही दुआ  करता हूँ उस रब से अब,
जीवन मे खुशियो का संचार हो अब,
ना आवे आपने पग मे  कोई  बाधा ,
जीवन  भर  हरा भरा  परिवार  हो ,
द्वार पर नव वर्ष है  नव वर्ष है    
नित   नूतन    उत्कर्ष      है                                     
अभिषेक भटनागर
 https://www.facebook.com/abhishek2411


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ऐसा दीप जलाओ साथी
नफ़रत की दीवार गिराकर,
सबको गले लगाओ साथी
ऐसा दीप जलाओ साथी
हर  कोने में नहीं उजाला,
कितने दीप जलाये तुमने ?
घोर अमावास के घेरे में
कितने सत्य छुपाये तुमने ?
बागी यौवन को जीवन से ,
कुछ तो ज़रा मिलाओ साथी
ऐसा दीप जलाओ साथी !!
निर्दोषों का रक्त बहाकर,
जाने उनको क्या मिलाता है ?
हिंसा के तपते उपवन में
कोई बीज कहाँ फलता है ?
दिव्य-प्रेम की मर्यादा का ,
उनको पाठ पढाओ साथी !!
ऐसा दीप जलाओ साथी
धरती से अम्बर तक जगमग
समता का दीपक मुस्कुराये |
सतरंगी परिधान पहन कर
नवदीपो का मौसम आये |
सबको साया मिले प्यार का ,
ऐसा वृक्ष  लगाओ    साथी
ऐसा दीप जलाओ साथी
शिव नारायण भटनागर ‘साकी ’ 
ऐ दोस्त मेरी चुपी को अभी जीत ना समझ 
तुफानो को देर कितनी लगती है आने मे 

यूँ बोल कर मे तेरा बुरा बन गया पर ना बोलता अपनी आखों मे गिर जाता 
तुने भी दम भरा था दोस्ती का जो मेरे एक लब्ज़ बोलने के बाद सारा निकल गया 

सब से दूर होकर तुम्हे कुछ ना हासिल होगा यह तुम भी जानती हो 
मेरी कमी है तुम्हारे दिल मे कही ना कही यह भी मानती हो 

ऐ दोस्त मेरी चुपी को अभी जीत ना समझ 
तुफानो को देर कितनी लगती है आने मे  

अभिषेक भटनागर
वो चुप है ज़माने क डर से
कुछ कहती नहीं ,
कुछ बोलती नहीं
याद सब रखती है
भूलने का नाटक भी करती है
कहती है ज़रुरत नहीं मुझको तुम्हारी
पर साथ रहने की  उम्मीद भी रखती है
भीड़ से अलग भी रहती है
पर भीड़ मे गुसने की कोशिश भी करती है
गुस्सा भी करती है  मुझ पर पराया भी बनती है
पर अकेले-२ कोने मे बैठा कर आसू भी बाहती है 
बहुत भोली है वो चालक समझती है
मेरी ख़ामोशी को अपनी जीत समझती है
यही उनकी अदा है जो साथ चलती है मेरे  दुआ बनकर
कभी मेरे साथ तो कभी खवाब मे आकर

अभिषेक  भटनागर
आने को तो मै आ जाऊ तेरे सहर मै
                          पर अजनबी की तरह मुझसे आया नहीं जाता
दे मुझे वो हक  जो मेरा है
                         तेरा प्यार दिल बुलाया नहीं जाता

अभिषेक भटनागर
छोटी सी है थोड़ी मोटी सी है ,जो भी मेरी अपनी सी है
रोती है बच्चो की तरह ,मुस्क्रुरती है गुडिया की तरह

सब कुछ सह जाती है उफ़ भी नहीं करती
सहनशक्ति  और सहजता  की मूरत हो तुम 

याद वो रखो जो तुमको खुशयां दे
भुला दो सब गम नयी शुरुवात करो

दुआ है मेरी तुम हमेशा ऐसे ही खिलखिलाती रहो
दमन मै तुम्हारे हजारो खुशयां हो

हर पल तुम्हारा इंतज़ार सा रहता है
तुम को  पाने का अहसास सा रहता है
खफा ना हो जाओ इसलिए खामोश रहता हूँ
कभी समझो मुझको मै कितना तन्हा रहता हूँ
तरस  आता  है तुम्हारी अक्ल पर मुझको
अपनों मे रहकर  अपनों को ही नहीं पहचान पाई


कुछ देर ठहर कर सपने देखने लगा मै
खुश था बहुत मै मुझको भी अपना कोई पहली बार मिला था
प्यार क्या होता है यह उसने बताया था उसने
जीवन के हर कदम पर साथ निभाया था उसने
फिर एक दिन अजीब सी हवा चली
टूट गए सारे सपने मेरे
छुट गए मेरे सारे अपने
कहते है सब मुझसे की नयी शुरुवात कर
ज़िन्दगी से फिर मुलाकात कर
पर यह शायद मेरे बस मे नहीं है
कोई नहीं है मेरे पास आज जिसके कंधे  पर जाकर रो साकू
हाँ शायद मुझको भी अब कंधेओ की ज़रूरत है ,
ना शिकवा किसी से ना शिकायत है अब
खामोश रहना आदत है अब

अकेला ही चला था मै पर राह मे कोई अपना सा लगा


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सत्यमेव जयते
आज बहुत दिनों कुछ ऐसा देखने को मिला जिस देखकर बहुत ही अजीब सी फीलिंग हो रही है समझ नहीं रहा की आमिर सर को थैंक्स कहू की उन्होने कुछ सच सामने रखा उस के बारे मै सिर्फ अकबरो मे पढ़ा था लेकिन उसमे इतनी वहैशत होगी देखकर और सुनकर ही डर सा लगता है | कहते है माता पिता अपनी औलाद के लिए सब कुछ करते है , लेकिन ऐसे लोगो देखकर हैरत मै पड़ गया हूँ , लड़का लड़की मै फर्क करना कहाँ तक सही है , आज कल दोनों को सामान तर्जा मिला हुआ है फिर भी ऐसी कोरितियाँ समाज मे मे पनप रही है | कभी दहेज़ के लिए , कभी बेटे की चाहत या कोई और कारण हमेशा घर की लक्ष्मी को ही क्यों भुगतना पड़ता है , यह देखकर और हैरत मे पड़ जाता हूँ की औरत ही औरत की दुश्मन बन बैठी है , ७० % केसों मे देखा गया है बेटे को उकसाने वाली उस की माँ या कहो  सासू माँ होती है |


कैसे कोई अपने   अपनी औलाद को मार सकता है वो भी जिस को उस ने देखा भी नहीं है | अरे अक्ल के दुश्मनों कुछ तो सोचों अगर लड़की ही नहीं होगी तो माँ , बहन , बुआ किस को बुलओओगे | राजस्थान के बारे मे सुनकर थोडा से हेरान हुआ वहां ऐसा होता है वैसे यह सिर्फ एक प्रदेश की बात नहीं है यह क्प्काम  पुरे देश मे है | कुछ लाचारी हमारे सिस्टम मे भी है दुराचारियो को सजा देने मे इतना टाइम लग जाता है तब तक बहुत  देर हो चुकी होती है | मेरी निजी राय मे ऐसे लोगो वैसे ही सजा देनी चाहिए जैसी सजा हम  कत्ल की देते है | कुछ ना कुछ करना होगा तभी कुछ होगा नहीं तो यह मौत का बिज़नस करने वाले देश को भी एक दिन नीलम कर देगे ... आगे बड़ो और विरोद करो |

अभिषेक भटनागर
मुरादाबाद