October 2011
तुम बिन अब कुछ अच्छा नहीं लगता
सच कहूँ तो कुछ साचा नहीं लगता
तुम्हारे ख्याल से दिल खुश हो जाता है
पर हकीकत देखकर चुप हो जाता है
दिल मै बहुत सारे अरमान है किस से कहू
तुम्हारे बिन अब कैसे रहूँ
दूर जाकर तुम भी खुश नहीं हो
पर जिद्दी हो मानती नहीं हो
तुम चुप अच्छी नहीं लगती हो
खोलो अपना मुह और सब को चुप कर दो
खुद भी पागल हो जाओ
और मुझको भी पागल कर दो
सच कहूँ तो कुछ साचा नहीं लगता
तुम्हारे ख्याल से दिल खुश हो जाता है
पर हकीकत देखकर चुप हो जाता है
दिल मै बहुत सारे अरमान है किस से कहू
तुम्हारे बिन अब कैसे रहूँ
दूर जाकर तुम भी खुश नहीं हो
पर जिद्दी हो मानती नहीं हो
तुम चुप अच्छी नहीं लगती हो
खोलो अपना मुह और सब को चुप कर दो
खुद भी पागल हो जाओ
और मुझको भी पागल कर दो
तीन शब्दों के बाद चुप हो गया मै
किसी ने जो कहा बहुत बोलते हो तुम
अभिषेक भटनागर
किसी ने जो कहा बहुत बोलते हो तुम
अभिषेक भटनागर
सपने भी रूठे है अपने भी छुटे है
बैठा हूँ वीरान सड़क पर
ना कोई रह देखती है मुझको
किधर जाऊ मैं अब
दीवारे सी खड़ी है चारो तरफ
ना कोई सुरक है ना कोई खिड़की
देखू भी तो कैसे देखू मैं
खामोश बैठा हूँ एक कोने मैं
इस इंतज़ार मैं की जिस
आधी ने मेरा जीवन ऊजड किया है
वो ही मेरा घर हरा भरा करेगी
पर मैं अपना विश्वास लिए बैठा हूँ
हाँ आज भी मैं तुम्हारे आस मैं बैठा हूँ
जितना मैं हरता हूँ उतना ही फिर से खड़ा हो जाता हूँ
तुमसे हारने या जीतने का सवाल नहीं है
तुम बस खुश रहो और मेरी रहो
यही चाहता हूँ
यही चाहता हूँ
अभिषेक भटनागर "हमराही "
दिल तो है पर शायद अहसास मर चुके है
मन से मन की बात अब हो भी कैसे
पहरे लगा रख के है जुबान पर और
कानो को बंद किया हुआ है की कुछ सुन ना ले
होठ बोलना चाहते है पर शायद ज़माने से डरते है
कब तक जी पओगी एन अंधारो मै तुम
मै भी देखना चाहता हूँ
तोड़ दो गी यह यह ज़ंजीर यह विश्वास रखता हूँ
हाँ तुम्हारे हर कदम की खबर रखता हूँ
पहरे लगा रख के है जुबान पर और
कानो को बंद किया हुआ है की कुछ सुन ना ले
होठ बोलना चाहते है पर शायद ज़माने से डरते है
कब तक जी पओगी एन अंधारो मै तुम
मै भी देखना चाहता हूँ
तोड़ दो गी यह यह ज़ंजीर यह विश्वास रखता हूँ
हाँ तुम्हारे हर कदम की खबर रखता हूँ
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