कभी-कभी बहुत ही तन्हा पता हूँ
आस पास सब बिखरा हुआ पता हूँ
सारे सपने कांच की तरह टूट से गए है ,
अब उनको समेट कर नया संसार बनाना चाहता हूँ
मेरी मंजिल बहुत ही दूर है
पर उस को पास लाना चाहता हूँ
जो रूठ गए है उनको मानना चाहता हूँ
दिल से एक बार जीना चाहता हूँ
हाँ कभी-कभी बहुत ही तन्हा पता हूँ
अभिषेक भटनागर
आस पास सब बिखरा हुआ पता हूँ
सारे सपने कांच की तरह टूट से गए है ,
अब उनको समेट कर नया संसार बनाना चाहता हूँ
मेरी मंजिल बहुत ही दूर है
पर उस को पास लाना चाहता हूँ
जो रूठ गए है उनको मानना चाहता हूँ
दिल से एक बार जीना चाहता हूँ
हाँ कभी-कभी बहुत ही तन्हा पता हूँ
अभिषेक भटनागर
Post A Comment:
0 comments so far,add yours
Thanks for comments