कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
की ज़िन्दगी की रह मे हर कदम पर धोका मिला ,
जिसको अपना माना वो ही बेगाना हुआ ,
दोस्ती क नाम पर झालावा मिला है दोस्तों ,

कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
कोई कहता था मुजसे मुश्किलों क बाद जीत होती है ,
पर शायद जीत जैसा शब्द मेरी किताब मे था ही नहीं ,

कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
जो पाना चाहता हूँ वो मंजिल धूमिल सी लगती है ,
चारो तरफ अँधेरा सा महसूस करता हूँ ,
ना सो पता हूँ ना खा पता हूँ बेचैनी सी रहती है ,
क्या हुआ है मुझे मे खुद नहीं जनता हूँ ,पर

कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
कोई कहता था मुझसे की आदमी की पहचान बुरे वक़्त मे होती है ,
मै किसकी पहचान करू मै तो सबको बुरा लगता हूँ ,
जो कुछ समय पहले तक मेरी स्थिति मे थे ,
वे हमको सलाह देते है या कहो ताने मरते है , पर

कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
जो कल तक मुझसे सारी बात करते थे वो मुझसे आज छुपाते है ,
जानता हूँ उनकी भी कोई मज़बूरी रही होगी उनको भी डर लगता होगा ज़माने की डर से ,
वो हँसते है अपना गम बुलाकर और कहते है मुझसे की लोगो की बात पर ध्यान ना दिया कर ,
और ये शायद उनका ही साथ ही है जो आज तक जिंदा हूँ ,पर

कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
लोगो को समझ पाना शायद मेरे लिए मुश्किल था ,
या यूँ कहो की मुझको कोई समझना नहीं चाहता था ,
पर क्या करे दोस्त जीना तो पड़ता है ,
जो वादे अपने आप से किये है वो पुरे करने है , पर
कभी कभी सोचता हूँ की क्यों जी रहा हूँ मै
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abhishek

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